
नागपंचमी हमारे देश भारत का एक प्राचीन और धार्मिक दृष्टि से देखा जाए तो एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है, यह त्योहार हर वर्ष सावन मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन नाग देवताओं की पूजा कर उनसे रक्षा और आशीर्वाद की कामना की जाती है। भारत में यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है, कई जगहों पर इस दिन मेले का आयोजन भी किया जाता है।
Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!नाग पंचमी 2025 is a time for reflection and devotion, enhancing the spiritual significance of this sacred festival.
Celebrating नाग पंचमी 2025
नाग पंचमी 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचमी तिथी प्रारंभ -28 जुलाई को 11:24 PM
पंचमी तिथी समाप्ती- 20 जुलाई को 12:46 PM
पूजा मूहुर्त – 5:56 AM से 8:35 AM
अवधि – 2 घण्टे 39 मिनट
क्यों मनाते हैं नागपंचमी पूजा ?
🌿 1. प्रकृति और जीवों के प्रति सम्मान
नागपंचमी त्योहार का प्रमुख उद्देश्य है सर्पों या नाग देवता के प्रति सम्मान व्यक्त करना , क्योंकि सांप पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खासकर चूहों जैसे जीवों की संख्या नियंत्रित करने में उनका बड़ा योगदान होता है।
🙏 2. नागों को देवता माना गया है
हिंदू धर्म में नागों को ईश्वरतुल्य माना गया है। भगवान शिव के गले में वासुकी नाग, विष्णुजी की शेषनाग पर शयन मुद्रा, और कृष्ण द्वारा कालिया नाग पर विजय — यह सभी घटनाएं सर्पों के दिव्य स्वरूप को दर्शाती हैं। हमारे पुराणों में भी नाग का बहुत महत्व बताया गया है।
📜 नागपंचमी की प्रमुख कथाएँ (Mythological Stories)
📖 कथा 1: जनमेजय की सर्पयज्ञ कथा
महाभारत के राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ किया था ताकि सारे नाग नष्ट हो जाएँ। परंतु आस्तिक मुनि ने हस्तक्षेप कर यह यज्ञ रुकवाया और तभी से नागों के प्रति सम्मान में नागपंचमी मनाई जाने लगी।
📖 कथा 2: कालिया नाग और श्रीकृष्ण
भगवान कृष्ण ने बचपन में कालिया नाग को यमुना नदी से बाहर निकाला और उसे जीवनदान दिया। इस दिन को नागों पर विजय और उन्हें सम्मान देने के रूप में भी देखा जाता है।
नाग पंचमी की पूजा विधि
- नाग पंचमी पर प्रातः काल उठने ते बाद तथा नित्य कर्म करने के बाद भगवान शिव का ध्यान करें।
- इसके उपरांत व्रत एवं पूजा का संकल्प लेना चाहिए।
- अब नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा लें और उसे गाय के दुध से स्नान करायें ।
- दूध से स्नान करवाने के बाद अब जल से स्नान करवाएं।
- स्नान करवाने के पश्चात नाग-नागिन की प्रतिमा का गंध, पुष्प, धूप और दीपक से पूजन करें।
- इसके उपरांत नाग-नागिन की प्रतिमा को हल्दी, रोली, चावल और फूल भी अर्पित करें।
- अब घी और चीनी मिला कच्चा दूध चढ़ाएं।
- इसके बाद सच्चे मन से नागदेवता का ध्यान करते हुए उनकी आरती करें।
- सबसे अंत में नाग पंचमी की कथा पढ़ें या सुनें।
🐍 नाग पंचमी व्रत कथा (पूर्ण विस्तृत)
🙏 प्रारंभ:
श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन नागों की पूजा का विशेष विधान है। इस दिन यह कथा श्रद्धा से सुनने से सर्पदंश का भय नहीं रहता और संतान की रक्षा होती है।
📖 प्राचीन कथा – नागों की बहन और भाइयों की कहानी
बहुत पुरानी बात है। एक गाँव में एक किसान रहता था। उसके सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी सबसे छोटी और सबसे प्यारी थी। माता-पिता उसे बहुत मानते थे।
वह लड़की रोज़ अपने भाइयों के लिए बड़े प्रेम से खाना बनाती और उन्हें आदर से खिलाती। लेकिन वह खुद अंत में बचा-खुचा भोजन करती। एक दिन खेतों में काम कर रहे भाइयों को खाने में देर हो गई। बहन भूख से बेहाल थी, परंतु भाइयों के बिना खाना नहीं खाया करती थी।
जब वह भोजन लेकर खेत जा रही थी, तभी रास्ते में एक साँप (नाग) भूखा-प्यासा बैठा था। जैसे ही लड़की उसके पास से गुज़री, नाग ने कहा —
“बहन! मैं बहुत भूखा हूँ, मुझे कुछ भोजन दो।”
लड़की ने प्रेम से अपनी पोटली खोली और पहले नाग को खाना परोसा। नाग ने खुश होकर कहा —
“तू बहुत दयालु है बहन! मैं नागलोक का राजा हूँ। आज के दिन तूने मुझे भोजन देकर भाई समान व्यवहार किया है। मैं तुझे आशीर्वाद देता हूँ — तुझे कभी कोई सर्प नहीं डसेगा और तेरे भाई सदा सुखी रहेंगे।”
यह घटना श्रावण शुक्ल पंचमी की थी। तभी से यह दिन नाग पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।
🐍 नागों की रक्षा की दूसरी कथा — सर्प यज्ञ और आस्तिक मुनि की कथा (संक्षिप्त)
जैसा पहले बताया, राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्प यज्ञ शुरू किया, जिसमें सभी नागों को बुलाकर आहुति दी जा रही थी।
जब तक्षक नाग को भी खींचा जाने लगा, तो आस्तिक मुनि ने यज्ञ को रोकने की याचना की। उन्होंने राजा को संतुष्ट करके वर माँगा कि “आप सर्प यज्ञ रोक दें।” राजा ने वचन निभाया और यज्ञ रोक दिया।
इसलिए नाग पंचमी के दिन आस्तिक मुनि की स्तुति भी की जाती है और नागों की पूजा करके यह प्रार्थना की जाती है कि:
“हे नागराज! आप हमारे घर में कभी क्लेश मत देना, हमारी रक्षा करना।”
📜 पारंपरिक व्रत कथा का समापन श्लोक (भाषा भेद अनुसार)
🌿
“नमः सर्पेभ्यो ये के च पृथ्वी मनौ, ये अंतरिक्षे ये दिवि तेभ्यः सर्पेभ्यो नमः।”🌿
“जो यह व्रत कथा श्रद्धा से सुनता है, उसके घर में कभी नागदोष नहीं आता, सर्पदंश से रक्षा होती है और संतान सुख बना रहता है।”
🧙♀️ नाग पंचमी पर गुड़िया क्यों पीटी जाती है?
🧵 लोककथा पर आधारित मान्यता:
ग्रामीण समाज में एक लोककथा प्रचलित है कि:
बहुत समय पहले एक स्त्री ने अनजाने में सर्प को मार डाला था।
सर्पों ने क्रोधित होकर बदला लिया और उस स्त्री के पुत्र को डस लिया।
जब वह स्त्री पश्चाताप करती है और नागों से क्षमा माँगती है, तब नागराज उसे क्षमा कर देते हैं।
इस कथा से जुड़ा प्रतीकात्मक संदेश यह था कि “जो स्त्री या कोई भी व्यक्ति सर्पों के प्रति क्रूरता रखेगा, उसे उसका दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा।”
इसीलिए कुछ क्षेत्रों में नाग पंचमी पर मिट्टी की स्त्री गुड़िया बनाकर उसे प्रतीकात्मक रूप से पीटा जाता है, ताकि वह अपने अपराध के लिए दंड पाए और लोग सर्पों के प्रति दया भाव रखें।
🐍 दूसरी मान्यता: सर्पों से रक्षा की प्रतीकात्मक क्रिया
कुछ लोग मानते हैं कि गुड़िया पीटना एक तरह की अपवित्रता या दुर्भावना को दूर करने की प्रक्रिया है।
- यह गुड़िया “अज्ञानता, पाप या सर्पों के प्रति हिंसा के प्रतीक” के रूप में होती है।
- उसे पीटकर महिलाएँ यह मानती हैं कि हम अपने अज्ञान और दोषों को निकाल रहे हैं, ताकि नागदेवता प्रसन्न रहें।
🧒 बाल-संस्कार और सामाजिक शिक्षा:
गाँवों में बच्चों को यह परंपरा सिखाई जाती थी ताकि:
- वे सर्पों को सताने या मारने से बचें,
- उन्हें प्रकृति और जीवों के प्रति दया का भाव सिखाया जा सके।
इस तरह यह परंपरा शिक्षात्मक रूप भी रखती थी।
⚠️ यह एक क्षेत्रीय परंपरा है, शास्त्रों में नहीं
ध्यान देने योग्य बात यह है कि:
- यह प्रथा किसी भी शास्त्र (स्कंद पुराण, महाभारत, गरुड़ पुराण आदि) में वर्णित नहीं है।
- यह केवल कुछ ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश के भागों में देखी जाती है।
✅ निष्कर्ष:
नाग पंचमी पर गुड़िया पीटने की परंपरा:
- एक लोककथा और प्रतीकात्मक पाप नाशक कर्म है,
- इसका उद्देश्य सर्पों के प्रति दया और समर्पण भाव को बढ़ाना है,
- और यह परंपरा शास्त्र सम्मत नहीं, बल्कि सामाजिक लोकविश्वास पर आधारित है।